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Showing posts from May, 2023

Baba as mata

 Mata roop mein baba Lori sunata gyan ki meethi meethi.

Bolo ki divyata

 Main kisi ko zor se bolu. Force karun.. No.

Ishwariye मदद

 Zarurat se zada. Samay par. Achanak Sab sahej. Har jagah se yes Shubh prerna

कोई सुनता नहीं

 कोई सुनता  नहीं  हमारे बोल  समय  शुभ  भावना  हैं 

बाबा का कमरा

 कमरा..रूह रिहान पत्र व्हवहार। समाचार, राय.

गीता भाग्वत महाभारत

 गोप गोपियां... वल्लभ चरित्र

वैकुण्ठ रस

 वैकुण्ठ रस

ज्योति

 ज्योति

रथी

 रथी . रथवान सारथी

जगत नीयंता

 जगत को चलाने वाला । कर्म कराने वाला। करनकरावनहार सर्वेश्वर।परमेश्वर।विशवेशवर। जगत स्वामी।

अनादि अविनाशी विश्व. नाटक

परमात्मा इस Preordinal world drama. का creator,director,principal actor है।

चेतन्य बीज

 भगवान मनुष्य सृष्टि का  चेतन्य बीज रुप है। सारे वृक्ष का knowledge(सार)उसमें समाया हुआ है। इसकी उत्पत्ति पालना और विनाश का ज्ञान उसमें समाया हुआ है।

सृष्टि का रचियता

 भगवान सृष्टि का रचियता है...कैसे। संकल्प से सृष्टि रचने का क्या अर्थ है।

अंतरयामी है या जानीजाननहार

भगवान अंतरयामी है या जानीजाननहार। सृष्टि के....

असार संसार

असार संसार । जन्म,मृत्यु, बुढ़ापा  रोग शोक,व्याधी झूठ, छल,कपट ईष्या, द्वेष, वैर,विरोध

जगत मिथ्या

 जगत मिथ्या? ये.संसार बना ही नही है।  चारो ओर बह्र ही बह्र है।

हम सो सो हम

 हम सो सो हम राज़ को जानो,तुम खुद देव थे सच ये मानो। देखना,उठना,बैठना, चलना,बात करना कैसा होगा।royal. Divine. प्रकृति पति के आगे प्रकृति दासी,पांच ही तत्व सदा order में। बादल बिजली मेघ पवन.संग संग नुपुर करेंगें। शिव बनाते कर्म के ब्राहमण देव बनाने आए है।

जगत चेतना हूं.

  ना मन हूँ ना बुद्धि ना चित अहंकार ना जिव्या नयन नासिका करण द्वार ना मन हूँ ना बुद्धि ना चित अहंकार ना जिव्या नयन नासिका करण द्वार ना चलता ना रुकता ना कहता ना सुनता जगत चेतना हूँ अनादि अनन्ता ना चलता ना रुकता ना कहता ना सुनता जगत चेतना हूँ अनादि अनन्ता ना मैं प्राण हूँ ना ही हूँ पंच वायु ना मुज्मे घृणा ना कोई लगाव ना लोभ मोह इर्ष्या ना अभिमान भाव धन धर्म काम मोक्ष सब अप्रभाव मैं धन राग गुणदोष विषय परियांता जगत चेतना हूँ अनादि अनन्ता मैं धन राग गुणदोष विषय परियांता जगत चेतना हूँ अनादि अनन्ता मैं पुण्य ना पाप सुख दुःख से विलग हूँ ना मंत्र ना ज्ञान ना तीर्थ और यज्ञ हूँ ना भोग हूँ ना भोजन ना अनुभव ना भोक्ता जगत चेतना हूँ अनादि अनन्ता ना भोग हूँ ना भोजन ना अनुभव ना भोक्ता जगत चेतना हूँ अनादि अनन्ता ना मृत्यु का भय है ना मत भेद जाना ना मेरा पिता माता मैं हूँ अजन्मा निराकार साकार शिव सिद्ध संता जगत चेतना हूँ अनादि अनंता निराकार साकार शिव सिद्ध संता जगत चेतना हूँ अनादि अनंता मैं निरलिप्त निरविकल्प सूक्ष्म जगत हूँ हूँ चैतन्य रूप और सर्वत्र व्याप्त हूँ मैं हूँ भी नहीं और कण कण रमता जगत चेतना हू

मुक्ति

मै और मेरा से देह अभिमान की उत्पत्ती और विकारों का आरंभ। इसलिए आत्मा भिमानी बनना ही मुक्त होने का मार्ग है।